
पब्लिक मीडिया आशीष रैकवार| म.प्र.उ.प्र. राजधानी से लेकर प्रदेश और शहर गाँव की गलियों में बिक रही नशीली वस्तुएं युवाओं की जिंदगी तबाह कर रही है। आज शिक्षा ग्रहण करने वाले युवकों को भी गांजे का कश लगाते देखे जा सकता है। हाई क्लास सोसाइटी में जहाँ नशा एक फैशन बन गया है वहीं गरीबों की बस्तियों में रहने वाले नवयुवा भी बीड़ी सिगरेट के कश लगाते खुलेआम देखे जा रहे हैं। हालाँकि इन पर प्रतिबंध तो लग पाना संभव नही है, लेकिन जिस वस्तु की बिक्री पर शासन ने रोक लगा रखी है उसकी बिक्री भी
नशे की लत में हर साल होती हैं अनगिनत मौत प्रतिबंधित नही हो पा रही है।

हम बात कर रहे है गांजा बिक्री जो की बन्द पुड़ियों में क्षेत्र की कुछ चुनिंदा स्थानों पर खुलेआम बेंची जा रही है। सामाजिक मर्यादाओं के बंधन में बंधे होने के कारण ज्यादातर युवा गांजा का नशा कर रहे हैं तो कुछ नशे के आदि पड़ चुके युवाओ को नशे की पूर्ति करने के लिए युवा अवैध रूप से खुले आम बेच रहे मेडिकल स्टोरो पर नाइट्रावेट 100mg जैसी घातक नशीली गोलिया का भी सेवन कर रहे हैं वहीं खांसी की रोक थाम के लिए प्रयोग किये जाने वाले कुछ सिरप युवा अपने नशे की लत को पूरा करने के लिये कर रहे है। इन सबकी विक्री पर प्रतिबंध तो लगाया गया था लेकिन यह प्रतिबंध महज़ कागजों तक ही सीमित होकर रह गया है।
पुलिस कई बार गांजा की भारी भरकम खेप पकड़ कर कारोबारियों को सलाखों के पीछे भी पहुंचा चुकी है ,लेकिन इसके बावजूद ये कारोबारी धड़ल्ले से गांजा की थोक व फुटकर बिक्री कर रहे हैं।नशा कारोबारियों की मानें तो प्रतिदिन लगभग हजारों का गांजा बिक रहा है।इतनी बिक्री का एकमात्र कारण यह है कि यह कारोबार या तो पुलिस के संरक्षण में फल-फूल रहा है, या फिर पुलिस को इसकी जानकारी नहीं है। इसका सेवन करने वालों को जहां मौका मिला वही फुक मारते अक्सर देखा जाता है इतना ही नही नशे के आदी व्यक्ति कहीं भी चिलम सुलगाने लगते है, चाहे वह सार्वजनिक स्थान हो या फिर खुला मैदान ! इतना ही नही इस तरह का नशा करने वाले लोग सड़क के किनारे भी बैठ कर चिलम चढ़ाते देखे जा सकते हैं।
इतना ही नहीं बाज़ार की कुछ चुनिंदा पान और किराने की ऐसी दुकाने भी है जहाँ पर बिना लाइसेंस के मुनक्के की पुड़िया भी बेची जा रही है, सुलोचन की ट्यूब भी नशे में उपयोग होने लगा है, जानकारी के अनुसार इस नशे को अधिकतर युवा एवं छोटे तबके के बेरोज़गार लोग कर रहे हैं और ऐसा समय भी आता है ,की पैसे की तंगी से इनके कदम अपराध की दलदल में चले जाते हैं।
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